मुर्गीपालन (POULTRY FARMING)
परिचय
भारत में मुर्गीपालन प्राचीनकाल से चला आ रहा है, लेकिन हमारे देश ने इस क्षेत्र में विगत दो दशकों में तीव्र गति से विकास किया है, आज मुर्गीपालन भारत में एक महत्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में उभरा है, जिसके माध्यम से गरीबों को न सिर्फ पोषक तत्वों की पूर्ति हो रही है, वरन् रोजगार व आय में भी वृद्धि हो रही है। भारतवर्ष को शाकाहारियों का देश माना जाता है, लेकिन विगत दशकों में मांस, अण्डा व मछली के उपभोग में भी तेजी से वृद्धि हो रही है यही कारण है कि मुर्गीपालन का व्यवसाय वर्तमान में 8-10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से वृद्धि कर रही है, इसका प्रमुख कारण कुक्कुट की अधिक उत्पादन देने वाली नस्लों का प्रादुर्भाव है, जो विगत दो दशकों के अनुसंधान का परिणाम है।
कुक्कुट (Poultry) एक व्यापक शब्द है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के पक्षी जैसे- चूजे (Chicken), हंस (Geese), गिनी मुर्गी (Guines fowl), बत्तख (Duck), पेरू पक्षी (Turkey), आदि सम्मिलित किए जाते हैं। भारत में उपर्युक्त में से मुर्गियों का महत्व व्यापारिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक है।
मुर्गीपालन अण्डा, मांस और पंखों के लिए किया जाता है। पोषण की दृष्टि से अण्डा और मांस दोनों प्रोटीन के भण्डार हैं, जिनमें किसी प्रकार की मिलावट सम्भव नहीं होती है।
भारत में सर्वप्रथम कुक्कुट पालन का प्रारम्भ मिसनरीज ने किया और इस प्रकार भारत में कुक्कुट विकास के लिए मथुरा, इज्जत नगर, हैदराबाद, चेन्नई, बैंगलोर और जबलपुर में अनुसंधान केन्द्र स्थापित किए गये।
परन्तु गत तीन दशकों में कृषि सम्बन्धी धन्धों में सर्वाधिक विकास मुर्गीपालन का हुआ है। वर्ष 1961 में भारत में कुल कुक्कुट आदि पक्षियों की संख्या 11-425 करोड़ थी एवं प्रति व्यक्ति औसतन 12 अण्डे नसीब होते थे। यह संख्या बढ़कर वर्ष 1987-88 में प्रति व्यक्ति 22 तक पहुँची है। वर्ष 1988-89 में भारत में कुल लगभग 18238 करोड़ अण्डों का उत्पादन हुआ। इस समय भारत विश्व का छठे नम्बर का अण्डा उत्पादक देश है। रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान व फ्रांस के बाद भारत का नम्बर अण्डा उत्पादन में है। इसी प्रकार उक्त वर्ष में उत्तर प्रदेश में भी 50-14 करोड़ अण्डों का उत्पादन हुआ। भारत में आंध्र प्रदेश प्रमुख अण्डा उत्पादक राज्य है।
1979 में इज्जत नगर में केन्द्रीय चिड़िया अनुसंधान संस्थान खोला गया। 2 नवम्बर, 1981 में संस्थान ने अपने स्थापना दिवस पर एक कुक्कुट मेला लगाया, जिनमें C.A.R.I. केन्द्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान में विकसित अनेक नस्लों को दिखाया गया था। इसके अलावा संस्थान द्वारा विकसित पोल्ट्री तथा अण्डों से बने पदार्थों, आहारों तथा आहार पदार्थों इत्यादि को भी मेले में दिखाया गया। भारत में अन्य संस्थायें खोली गई, जो कि पक्षियों की उन्नति के लिए सतत् कार्य कर रही हैं। ये संस्थायें निम्नलिखित हैं
(1) आल इण्डिया ऐसोसियेशन ऑफ पोल्ट्री इण्डस्ट्री।
(2) आल इण्डिया पोल्ट्री फार्मर्स ऐसोसियेशन।
(3) नेशनल को-ऑपरेटिव फॉर एग ।
(4) एग पोल्ट्री मार्केटिंग फेडरेशन।
(5) रीजनल को-ऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ।
(6) स्टेण्डिम कमीटी ऑन पोल्ट्री डेवलपमेन्ट |
(7) कम्पाउण्ड लाइवस्टोक फीड मैन्यूफैक्चर्स ऐसोसियेशन ।
(8) सेन्ट्रल पोल्ट्री डेवलपमेन्ट एडवाइजरी कमीटी कौन्सिल ।
मुर्गीपालन का महत्व एवं भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान (Importance & Contribution of Poultry Farming in Indian Economy)
भारत में कुक्कुट पालन कृषकों के लिए आय का स्रोत व जीविका का साधन मात्र माना जाता है। भारतीय दशाओं में इस व्यवस्था का विशेष महत्व है, जिसके कारण निम्नलिखित हैं
(1) कुक्कुट पालन हेतु अधिक भूमि एवं बड़ी पूँजी की आवश्यकता नहीं होती है।
(2) भारत में अण्डे का उपयोग करना जीव हत्या मानी जाती थी। वह धारणा अब वैज्ञानिकों द्वारा समाप्त कर दी गयी है एवं इसे वानस्पतिक (शाकाहारी) माना जाता है।
( 3 ) भारत सरकार के मन्त्रिमण्डल सचिवालय के सांख्यिकीय विभाग के अनुसार कुक्कुट पालन से पशुपालन की भाँति राष्ट्रीय आय बढ़ती है।
(4) फसल उत्पादन में कुक्कुट खाद्य का पर्याप्त योगदान है। इसकी बीट, कचरे से सन्तुलित कार्बनिक खाद प्राप्त होती है। जिसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश की मात्रा क्रमश: 3, 2 व 2 प्रतिशत होती है। अनुमान है कि 40 पक्षियों से एक वर्ष में एक टन खाद प्राप्त हो जाती है।
( 5 ) भारतीय ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था में कुक्कुट पालन एक विशेष कुटीर धन्धा है। पिछले दशक में तो ग्रामों में इस क्षेत्र में विशेष वृद्धि आँकी गयी है।
(6) अब भारत में मुर्गियों की संकर किस्में भी उपलब्ध होने लगी हैं, जो यहाँ की दशाओं में बड़ी ही उपयोगी हैं।
( 7 ) अण्डे में प्रोटीन का अपार भण्डार है। अण्डे की प्रोटीन का अगर उत्पादन व्यय निकाला जाय तो दालों से प्राप्त प्रोटीन से भी सस्ती पड़ती है।
भारत में मुर्गीपालन के विकास में बाधाएँ (Hindrence in Poultry Developmemt in India)
भारत में मुर्गीपालन में इतने विकास के बावजूद भी अभी बहुत अधिक गुंजाइश है। इसके तीव्र विकास में निम्नलिखित कठिनाइयाँ हैं
(1) पूँजी की कमी (Lack of capital) – भारतीय कृषक निर्धन हैं उनके पास व्यवसाय चलाने के लिए पैसे की कमी है। सरकार अनुदान के रूप में धन देती है तो इससे काफी प्रोत्साहन मिल सकता है।
( 2 ) आहार की कमी (Lack of feeds) – मुर्गियों के आहार में 50% दाने की मात्रा होनी चाहिए। लेकिन खाद्यान्नों की कमी के कारण मुर्गियों को उपयुक्त मात्रा में दाना नहीं मिल पाता है।
(3) अण्डे खाने में अन्धविश्वास (Superstitions in egg eating) – लोगों की धारणा है कि अण्डों में जीव होता है तथा जीव खाना मांसाहारी भोजन के अन्तर्गत आता है। जो लोग शाकाहारी होते हैं वे अण्डे नहीं खाते, लेकिन वास्तविकता यह है कि केवल गर्भित अण्डों में जीव होता है प्रत्येक अण्डे में नहीं कहीं-कहीं अण्डे पाने वाले फार्मों पर मुर्गा नहीं रखा जाता है ऐसे अण्डों में जीव नहीं होता है।
(4) बीमारी व परजीवियों की समस्या (Problem of disease and Parasites) – प्राय: मुर्गियाँ देखने में स्वस्थ दिखाई देती हैं, लेकिन अचानक रानीखेत जैसी बीमारियों से थोड़े समय में काफी मुर्गियाँ समाप्त हो जाती हैं। अतः मुर्गीपालकों में भय का वातावरण रहता है। पक्षियों में बीमारी तथा परजीवियों की समस्या बनी ही रहती है।
(5) व्यवसाय में ज्ञान एवं अनुभवों की कमी (Lack of knowledge and experience in business) – किसी भी व्यवसाय को चलाने के लिए ज्ञान की विशेष आवश्यकता होती है। ज्ञान के अभाव में व्यवसाय चलाना कठिन कार्य है। सरकार को किसानों के लिए मुर्गीपालन से सम्बन्धित प्रशिक्षण देने के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए। उनको प्रयोगात्मक ज्ञान दिया जाय तथा उनको समय-समय पर विशेषज्ञों के व्याख्यानों द्वारा प्रोत्साहित करना चाहिए।
( 6 ) धार्मिक भावनाओं की समस्या (Problem of religious sentiments ) – हमारे देश में अनेक धर्म हैं, हिन्दू धर्म के अनुयायियों का बाहुल्य है। हिन्दू धर्म के अनुयायी मांस, मछली, अण्डा नहीं खाते हैं। इसके कारण अण्डों की समुचित खपत नहीं हो पाती है।
(7) अण्डों की माँग में भिन्नता (Variation in eggs demand) – मौसम के अनुसार अण्डो की माँग में भिन्नता रहती है। गर्मियों में लोग अण्डों का कम प्रयोग करते हैं, जबकि सर्दियों में अण्डों की अधिक माँग रहती है। लोगों की ये धारणा भी रहती है कि गर्मियों में अण्डे गर्मी करते हैं।
(8) उत्पादन में भिन्नता (Variation in production) – अण्डों का उत्पादन गर्मियों में कम तथा सर्दियों में अधिक होता है जिसका बाजार पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
(9) विपणन सुविधा (Marketing facilities) – अण्डा व्यवसाय में अभी ऐसे साधनों का अभाव है जिनसे अण्डों का विपणन बड़े पैमाने पर हो सके। थोड़ी असावधानी से अण्डे फूट जाते हैं। अण्डों को कम तापक्रम पर ही रखना चाहिए, क्योंकि वातावरण का ताप भी अधिक होता है।
(10) अण्डों के गुणों का स्तर निर्धारित होना (Fixation of standard of quality of eggs) – अण्डों के गुणों की जानकारी करना आवश्यक है, क्योंकि गर्मियों में ये शीघ्र खराब हो जाते हैं। अधिक ताप के कारण अण्डा निषेचित भी जल्दी हो जाता है। अच्छा, स्वस्थ एवं ताजा अण्डा ही उपयोग में लाना चाहिए।
(11) भण्डारण सुविधा (Storage facilities) – हमारे देश में सभी स्थानों पर अण्डा भण्डारण की उपयुक्त व्यवस्था नहीं है जहाँ पर गर्मी के दिनों में अण्डों का उचित भण्डारण किया जा सके ।
(12) यातायात की सुविधाएँ (Transportation of facilities) – ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक अण्डों को शहर तक ले जाने की समुचित व्यवस्था नहीं है। यातायात के साधनों के अभाव में अधिकतम लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है।