सामाजिक समूह (Social Group)
समाज मनोविज्ञान, व्यक्ति का अध्ययन सामाजिक समूह के सन्दर्भ में करता है। व्यक्ति हमेशा समूह के रूप में रहा है। सृष्टि के निर्माण से जो भी इतिहास पढ़ने व सुनने को मिलता है। उससे जानकारी होती है कि व्यक्ति हमेशा एक समूह के रूप में रहा है। कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रहता है। व्यक्ति जिस समूह में रहता है उसी समूह के अनुरूप अपना व्यवहार बनाता है। जब व्यक्ति अपने परिवार में होता है तो उसका व्यवहार परिवार के अनुकूल रहता है तथा जब वह परिवार से बाहर समाज में आता है तो उसका व्यवहार समाज के अनुकूल होता है। समाज में व्यक्ति अपने आप को समाज की आवश्यकता के अनुरूप बना लेता है। इसलिए यहाँ हम कह सकते हैं कि व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक व्यवहार के अध्ययन के लिए सामाजिक समूह का अध्ययन अति आवश्यक है।
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सामाजिक समूह की परिभाषाएँ (Definitions of Social Groups)
1. मैकाइवर एवं पेज के अनुसार – “समूह से हमारा तात्पर्य मनुष्यों के किसी ऐसे संग्रहण से है जो एक दूसरे के साथ सामाजिक सम्बन्धों में सम्बद्ध होते हैं। ”
“By group we mean any collection of human being who are brought in to social relationship with one another.”
-Maciver & page
2. विलयम्स के अनुसार- “एक सामाजिक समूह लोगों का समुच्चय है जो अर्न्तसम्बन्धित भूमिका करते हुए तथा अन्तःक्रिया के एक इकाई के रूप में स्वयं तथा दूसरों के द्वारा मान्य होते हैं। “
“A Social group is given aggregate of people playing interrelated roles and recognized by themselves or others as a unit of interaction.”
-Williams
3. रावर्ट मर्टन के अनुसार- “समूह की समाजशास्त्रीय अवधारणा मनुष्यों की एक संस्था का संकेत करती है, जो एक दूसरे से स्थापित प्रतिमानों के अनुसार अन्तःक्रिया करते हैं।”
“The sociological concept of a group refers to a member of people who interact with one member in accord with established pattern.”
-Robert Merton
4. बोगार्डस के अनुसार- “एक सामाजिक समूह में दो या अधिक व्यक्तियों की कल्पना की जा सकती है। इन व्यक्तियों का ध्यान कुछ सामान्य उद्देश्यों पर होता है। यह एक दूसरे को प्रेरणा देते हैं। यह आपस में एक दूसरे के भक्त होते हैं तथा समान क्रियाओं में सम्मिलित होते हैं।”
“A Social group may be thought of as a number of persons, two or more who have some common object of attention, who are stimulating to each other, who have a common on loyality and participate in similar activities.”
-Bogards.
5. क्रंच, क्रैचफील्ड और बेलेची के अनुसार- ” दो या दो से अधिक व्यक्तियों का वह संग्रह जिनमें समूह के सदस्यों का व्यवहार एक दूसरे पर परस्पर आश्रित व प्रभावित करता हो तथा समूह के सदस्य आप में एक विचार में सहभागी हों।”
“A social group is a given aggregate of people playing inter-related roles and recognized in themselves of others a unit of interaction.”
– K, Crutchfield & Balechee
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि “सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह है, जिसमें इकाई के रूप में सभी सदस्य किसी लक्ष्य की प्राप्ति की ओर अन्तः क्रिया करते हैं। इन समूहों के सदस्य एक दूसरे के प्रति सहानुभूति रखते हैं, एक दूसरे को प्रेरणा दे सकते हैं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य साथियों का सहयोग करते हैं या ले सकते हैं।”
सामाजिक समूह की मौलिक विशेषताएँ (Fundamental features of Social Group)
1. व्यक्तियों का संग्रहण (Collection of individuals)– सामाजिक समूह तभी बन सकता है जब उसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एकत्र होंगे।
2. सामाजिक सम्बन्ध (Social Relationship) – समूह के सदस्य होने के कारण उसमें आपसी सामाजिक सम्बन्ध पाया जाता है। बिना किसी सम्बन्ध के समूह बन ही नहीं सकता है।
3. सामानय उद्देश्य (Common Object) – समूह के सदस्यों में जब कम से कम एक सामान्य उद्देश्य होगा तभी वह समूह बन सकता है क्योंकि दो या अधिक व्यक्ति तभी एकत्र हो सकते हैं जब उनके उद्देश्य समान होंगे।
4.सामाजिक सामान्यक एवं मूल्य (Social Norms and Values) – जब समाज में कोई समूह बनता है तो आपसी सम्बन्ध बनाने के लिए उनमें सामाजिक सामान्यक एवं मूल्य विकसित होते हैं जिनके सामान्यक व मूल्य समान होते हैं तो उनका एक अलग समूह बनने लगता है।
5.पारस्परिक चेतना (Mutual Awareness) – सामाजिक समूह के सदस्य एक-दूसरे के हितों के प्रति बहुत जागरूक रहते हैं और इसी पारस्परिक चेतना के कारण समूह में निकटता आती है। इससे समूह मजबूत होता है।
6. सहानुभूति की भावना (Feeling of Sympathy) – सामाजिक समूह के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना रहती है। सदस्यगण एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते हैं। इससे सदस्यों में परिवारिकता का भाव पैदा होता है।
7. सहयोग की भावना (Feeling of Cooperation) – सामाजिक समूह के सदस्य एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भावना रखते हैं ये सदस्य एक-दूसरे सदस्यों के विभिन्न प्रकार के कार्यों में सहयोग करते हैं।
8. पारस्परिक सहभागिता लेना (To Participate Reciprocal Roles) – सामाजिक समूह के सदस्य विभिन्न कार्यों में एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए पारस्परिक भूमिका निभाते हैं।
सामाजिक समूह के प्रकार (Types of Social Groups)
सामाजिक समूह विभिन्न प्रकार के होते हैं। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग ढंग से सामाजिक समूहों के प्रकारों का विवरण प्रस्तुत किया है। यहाँ सामान्य एवं सर्वमान्य रूप से सामाजिक समूहों को दो भागों (प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह) में विभाजित किया है जिनका विवरण निम्नलिखित है:
प्राथमिक समूह (Primary Group)
कूले के अनुसार ” प्राथमिक समूह से तात्पर्य उन समूहों से है, जिनमें आमने-सामने का घनिष्ठ सम्बन्ध और सहयोग होता है। इस तरह के समूह अनेक अर्थों में प्रभावित होते हैं, मुख्यतः इस कारण से कि वे व्यक्ति की सामाजिक प्रवृत्ति एवं आदर्शों के निर्माण करने में मौलिक हैं।
“By primary group I mean characterized by intimate face to face association and cooperation. They are primary in several senses, but chiefly in that they are fundamental in forming social nature and ideals of the individual.”
कूले ने बताया कि इस प्रकार के समूहों में घनिष्ठ सहयोगी, सहानुभूति एवं सद्भावनापूर्ण सम्बन्ध पाये जाते हैं। जैसे परिवार, खेल की टीम, मित्र मंडली, पड़ोसी आदि समूह के अन्य सदस्यों के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझते हैं। ।
प्राथमिक समूहों के सदस्य अपने प्राथमिक समूहों की विशेषताएँ (Characteristics of Primary Groups)
प्राथमिक समूहों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(क) आन्तरिक विशेषताएँ (Internal characteristics of primary Groups)
1. उद्देश्यों की समानता प्राथमिक समूह के सदस्यों का उद्देश्य एक समान होता है। जैसे-खेल प्रतियोगिता में टीम को विजयी कराना सभी सदस्यों का एक समान उद्देश्य होता है।
2. वैयक्तिक सम्बन्ध इस समूह के सदस्य आपस में व्यक्तिगत रूप से सभी एक-दूसरे से सम्बन्धित रहते हैं।
3.स्वाभाविक सम्बन्ध इस समूह की सदस्य संख्या कम रहती है। इसलिए दैनिक रूप से निकटता बनती है जिसे हम स्वाभाविक सम्बन्ध कहते हैं।
4. प्राथमिक नियंत्रण इन समूहों के सदस्यों के मध्य आपसी घनिष्ठ सम्बन्ध होने के करण एक-दूसरे को नियन्त्रित करते हैं, अतः इन समूहों में प्राथमिक नियन्त्रण पाया जाता है।
5. सर्वांगीण सम्बन्ध सदस्य हर समूह के उद्देश्य की पूर्ति के लिए हृदय से तैयार रहते हैं अर्थात सदस्यों में सर्वागीण सम्बन्ध पाया जाता है।
6. सम्बन्ध स्वयं साध्य होते हैं। जैसे माँ और बेटे के बीच सम्बन्ध किसी लाभ से न होकर त्यागपूर्ण एवं सुख शान्ति के लिए होते हैं।
(ख) बाह्य विशेषताएँ (External Characteristics of Primary Groups)
1. आमने-सामने के सम्बन्ध होते हैं।
2. सदस्यों की संख्या कम होती है।
3. सदस्यों के बीच घनिष्ठता होती है।
4. इस प्रकार के समूह अधिक स्थायी एवं इसके सदस्यों के सम्बन्ध में निरन्तरता होती है।
5. इस प्रकार के समूहों का विकास किसी विशेष व्यक्ति के स्वार्थ की पूर्ति पर आधारित नहीं होता है।
प्राथमिक समूह का महत्व (Importance of Primary Group)
1. इन समूहों का व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण स्थान होता है। बच्चा, परिवार (प्राथमिक समूह) से ही भाषा, रीति-रिवाज आदि बातों को सीखता है।
2. प्राथमिक समूह का व्यक्ति के व्यवहार पर पूरा नियन्त्रण रहता है। जैसे परिवार में छोटे बच्चों पर माता-पिता, बाबा-दादी, बड़े भाई बहिन आदि का नियन्त्रण रहता है।
3. प्रत्येक व्यक्ति इन प्राथमिक समूहों द्वारा ही आदर्श गुण एवं उच्च मूल्य सीखता है। जैस-प्रेम, त्याग, सहयोग आदि।
4. प्रत्येक व्यक्ति को आन्तरिक शान्ति, संतोष समूहों द्वारा प्राप्त होता है। जैसे- हँसी-मजाक, मेल-मिलाप आदि का आनन्द इन्हीं समूहों से प्राप्त करता है।
5. प्राथमिक समूह व्यक्ति का समाजीकरण करते हैं।
द्वितीयक समूह (Secondary Group)
द्वितीय समूह विशाल आकार का संघ होता है जो कि मनुष्यों का अवैयक्तिक संगठन होता है।
1. फेयर चाइल्ड के अनुसार “एक समूह अपने सामाजिक संगठन की मात्रा में प्राथतिक या आमने-सामने के सम्बन्धों वाले समूहों के प्रकार से भिन्न हो, द्वितीयक समूह कहलाता है। “
2. आगवर्न तथा निमकाफ के अनुसार-” वे समूह जो घनिष्ठता के अभाव का अनुभव प्रदान करते हैं, द्वितीयक समूह कहलाते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि द्वितीयक समूह वे समूह हैं जिनमें सामाजिक सम्बन्ध औपचारिक, आकस्मिक अवैयक्तिक स्वार्थपूर्ण, अस्थाई, अल्पकालीन, अन्तः क्रियात्मक तथा हस्तान्तरणीय होते हैं। राजनैतिक पार्टियों, भीड़, स्कूल, कॉलेज, मजदूर संघ आदि इसके उदाहरण हैं।
द्वितीयक समूहों की विशेषताएँ (Characteristics of Secondary groups)
(क) बाह्य विशेषताएँ (External characteristics of secondary group)
1. शारीरिक दूरी (Physical Distance) – शारीरिक रूप से काफी दूरी होती है। इस प्रकार के समूह में सदस्यों में कोई घनिष्ठ नहीं होती है।
2. समूह का विस्तृत आकार (Large size of Group) – द्वितीयक समूहों में सदस्य संख्या बहुत अधिक होती है। जैसे राजनैतिक पार्टी की सदस्यता सम्पूर्ण देश भर में होती है तो समूह का आकार बहुत बड़ा होता है।
3. सम्बन्धों का क्षणिक काल (Transitory duration of relationship) – यह समूह इतने बड़े आकार का होता है कि सदस्य ज्यादा दिन के लिए एकत्रित नहीं हो सकते। इसलिए सम्बन्ध भी क्षणिक काल के लिए बनते हैं। जैसे राजनैतिक दल का वार्षिक अधिवेशन दो या तीन दिन का होता है।
(ख) आन्तरिक विशेषताएँ (Internal Characteristics of secondary group)
1. उद्देश्यों की असमानता (Disparity of Ends) – इस प्रकार के समूह में सभी सदस्यों के उद्देश्यों में समानता नहीं होती है। सभी सदस्य अपने-अपने उद्देश्यों को पूरा करने को प्रयास करते हैं।
2. सम्बन्धों का बाहरी मूल्यांकन (External Evaluation of the relation) – सदस्य आपस में दूसरे सदस्यों के व्यवहार का बाहरी मूल्यांकन ही कर पाते हैं क्योंकि सदस्यों की आपसी निकटता हो ही नहीं पाती। द्वितीयक समूह में सदस्यता अधिक व क्षेत्र अधिक होने के कारण सदस्यों का जल्दी-जल्दी मिलना कठिन हो जाता है। कभी-कभी मिलना भी सम्भव हो पाता है। इस कारण सदस्यगण दूसरे सदस्यों का केवल बाहरी मूल्यांकन ही कर पाते हैं।
3. औपचारिक एवं अवैयक्तिक सम्बन्ध (Formal and Impersonal relationship) – सदस्यों की घनिष्ठता के अभाव में उनमें अनौपचारिक एवं व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं बन पाते। क्षेत्र बड़ा व सदस्य संख्या अधिक होने के कारण सम्बन्ध केवल औपचारिक व अवैयक्तिक ही रह जाते हैं।
4. अपूर्ण सम्बन्ध (Exclusive relationship) – सदस्यों की आपस में निकटता न होने के कारण सदस्यों में उनके व्यक्तित्व अथवा उनके जीवन का एक पक्ष ही समूह में समाविष्ट हो पाता है।
5. बाह्य नियन्त्रण (External Control) – इस प्रकार के समूहों में सदस्यों पर केवल नियम या कानून के द्वारा नियन्त्रण किया सकता है। किसी सदस्य पर संगठन के दूसरे के व्यक्तित्व व घनिष्ठता का कोई भी प्रभाव नहीं होता है।
6. सम्बन्ध बनाये जाते हैं (Relationship are made) – प्राथमिक समूहों में सम्बन्ध स्वयं बन जाते हैं। जैसे परिवार में बच्चे का जन्म होने के साथ ही माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन, नाना-नानी के सम्बन्ध स्वयं बन जाते हैं, लेकिन इस प्रकार के द्वितीयक समूहों में यदि आप चाहेंगे तभी किसी दूसरे से आपके सम्बन्ध बन पायेंगे। यदि सदस्य को किसी से कोई सम्बन्ध रखना है तो सदस्य को सम्बन्ध बनाने पड़ेंगे। जैसे किसी राजनैतिक दल में किसी बड़े नेता से सदस्य सम्बन्ध बनाना चाहते हैं, तो उससे मिलकर परिचय करना पड़ेगा तभी सम्बन्ध बन पायेगें अन्यथा नहीं।
7. ऐच्छिक स्वीकृति (Voluntary Acceptance) – यदि व्यक्ति की अपनी इच्छा इस प्रकार के समूह में रहने की है तभी वह सदस्य बन सकते हैं। बिना व्यक्ति की स्वीकृति के कोई भी व्यक्ति व्यक्ति को इस प्रकार के समूह में सदस्य नहीं बना सकता। जबकि प्राथमिक समूह में तो सदस्य को रहना ही पड़ेगा।
8. सक्रिय एवं निष्क्रिय सदस्यता (Active and Inactive membership) – इस प्रकार के समूह में यदि सदस्य सक्रिय सदस्य बनना चाहता है तो उसे अलग से सदस्यता लेनी पड़ती है और निष्क्रिय सदस्यता एक सामान्य सदस्यता रहती है।
द्वितीयक समूहों का महत्व (Importance of Secondary Groups)
द्वितीयक समूहों के आन्तरिक व बाह्य गुणों के वर्णन के आधार पर यह नहीं समझना चाहिए कि इस प्रकार के समूह व्यक्ति के लिए कोई महत्व नहीं रखते। इन समूहों का भी व्यक्ति के जीवन में महत्व होता है। इस प्रकार के समूह व्यक्ति के कार्यों एवं व्यवहारों का द्वितीयक नियन्त्रण करते हैं। इस प्रकार के समूह सामाजिक सभ्यता के विकास के लिए सहायक ही नहीं होते हैं बल्कि इनके कारण सामाजिक परिवर्तन भी होते हैं। कल कारखाने, स्कूल, मन्दिर, नगर, राष्ट्र आदि भी व्यक्ति के विकास क्षेत्र को अधिक विस्तृत बनाते हैं तथा व्यक्तियों को संतोष भी प्रदान करते हैं। इस प्रकार के समूह भी व्यक्तियों की आवश्यकताओं एवं साधनों की पूर्ति में सहयोगी होते हैं। इन समूहों की कार्य पद्धति के कारण ही व्यक्ति विभिन्न प्रकार की कुशलता सीखता है और इस प्रकार के समूहों के कारण ही व्यक्ति की अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है। जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, सामाजिक नेता, राजनैतिक नेता, प्राध्यापक आदि इस प्रकार के समूहों की सक्रियता के कारण बनते हैं। यह हम कह सकते हैं कि द्वितीयक समूहों का भी व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक महत्व है।